Wednesday, November 01, 2006

इस्लाम से पहले औरत


इस्लाम से पहले औरत का हाल बहुत खराब था। दुनिया में औरतों की कोई इज्ज़त नहीं थी। मर्दों के लिए उनकी नफसानी ख्वाहिश पुरी करने का खिलौना मात्र थी। मजदूरी करके जो कमाती थी वो भी मर्दों को देती थी।
जानवरों की तरह उनको मारते पीटते थे, छोटी छोटी बात पर उनके कान, नाक काट दिया करते थे, यहां तक कि कत्ल भी कर दिया करते थे।
लड़कियों को जिन्दा दफन कर दिया करते थे। बाप के मरने के बाद बेटे जायदाद के साथ बाप की बिवियों के भी मालिक बन जाया करते थे।
औरतों के बेवा हो जाने के बाद एक बन्द अन्धेरे कमरे में एक साल तक कैद करके रखते थे। एक साल तक खाना पानी के अलावा जरुरत की सारी चीज़े बंद कर देते।
बहुत सी औरतें तो घुटकर मर जाती थी। जो बच जाती थी उनके साथ ऐसे व्यवहार किये जाता थे कि औरतें रो रोकर, घुट घुटकर जिन्दगी गुजारती थी।
औरतों को शौहर की चिता के साथ ही जला दिया जाता था जिसे लोग 'सती' कहते थे।
समाज में न औरतों के कोई हक़ थे न उनकी फरियाद को कोई सुनने वाला था। रहमतुल आलमीन की रहमत का आफताब जब उजागर हुआ तो सारी दुनिया ने अचानक ये महसुस किया कि
जहां तारीक़ था, ज़ुलमातकदा था, सख्त काला था
कोई पर्दे से किया निकला के घर घऱ में उजाला था।

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