1. इस ख्याल में रहना कि जवानी और तन्दुरुस्ती हमेशा रहेगी।
2. खुद को दूसरों से बेहतर समझना।
3. अपनी अक्ल को सबसे बढ़कर समझना।
4. दुश्मन को कमजोर समझना।
5. बीमारी को मामुली समझकर शुरु में इलाज न करना।
6. अपनी राय को मानना और दूसरों के मशवरें को ठुकरा देना।
7. किसी के बारे में मालुम होना फिर भी उसकी चापलुसी में बार-बार आ जाना।
8. बेकारी में आवारा घुमना और रोज़गार की तलाश न करना।
9. अपना राज़ किसी दूसरे को बता कर उससे छुपाए रखने की ताकीद करना।
10. आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
11. लोगों की तक़लिफों में शरीक न होना, और उनसे मदद की उम्मीद रखना।
12. एक दो मुलाक़ात में किसी के बारे में अच्छी राय कायम करना।
13. माँ-बाप की खिदमत न करना और अपनी औलाद से खिदमत की उम्मीद रखना।
14. किसी काम को ये सोचकर अधुरा छोड़ना कि फिर किसी दिन पुरा कर लिया जाएगा।
15. दुसरों के साथ बुरा करना और उनसे अच्छे की उम्मीद रखना।
16. आवारा लोगों के साथ उठना बैठना।
17. कोई अच्छी राय दे तो उस पर ध्यान न देना।
18. खुद हराम व हलाल का ख्याल न करना और दूसरों को भी इस राह पर लगाना।
19. झूठी कसम खाकर, झूठ बोलकर, धोखा देकर अपना माल बेचना, या व्यापार करना।
20. इल्म, दीन या दीनदारी को इज्जत न समझना।
21. मुसिबतों में बेसब्र बन कर चीख़ पुकार करना।
22. फकीरों, और गरीबों को अपने घर से धक्का दे कर भगा देना।
23. ज़रुरत से ज्यादा बातचीत करना।
24. पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार नहीं रखना।
25. बादशाहों और अमीरों की दोस्ती पर यकीन रखना।
26. बिना वज़ह किसी के घरेलू मामले में दखल देना।
27. बगैर सोचे समझे बात करना।
28. तीन दिन से ज्यादा किसी का मेहमान बनना।
29. अपने घर का भेद दूसरों पर ज़ाहिर करना।
30. हर एक के सामने अपना दुख दर्द सुनाते रहना।
Saturday, November 18, 2006
न तक़लीफ़ दो न तकलीफ उठाओं
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया है कि एक मुसलमान का इस्लामी निशान ये है कि तमाम मुसलमान उसकी ज़बान, हाथ और उसके व्यवहार से सलामत रहे। इसका मतलब है, वो किसी मुसलमान को तक़लीफ न दे तथा एक मुसलमान को चाहिए कि वो जो कुछ अपने लिए पसंद करता है, वही दुसरों के लिए भी पसंद करे। कोई भी शख्स दूनिया में यह पसंद नहीं करेगा कि वह तक़लिफ़ और मुसिबतों में रहे और दुख उठाये। तो हर शख्स का ये फर्ज़ है कि वह रसुलल्लाह की फरमान के मुताबिक चले।
कुछ बातों का ख़ास तौर पर ख्याल रखना चाहिए-
1. किसी के घर मेहमान बनकर जाए, या बीमार को देखने जाए, इतना देर तक या इतने दिन तक भी ना ठहरे कि मेज़बान तंग आ जाए और तक़लीफ़ में पड़ जाए।
2. किसी से मिलने जाए तो हद से ज्यादा या बे सिर पैर की बातें भी ना करें कि सुनने वाला परेशान हो जाए।
3. रास्तों में कोई ऐसा सामान न छोड़े जिससे ठोकर खाकर कोई रास्ते में गिर जाए।
4. किसी के घर मेहनान जाओ तो कोई ऐसी चीज की फरमाइश न करों, जिससे प्रबंध करने में मालिक को तक़लीफ हो।
5. खाना खाते समय ऐसी चीजों के नाम न ले जिससे किसी को घीन होती हो और उसको खाना खाने में तकलीफ आए।
6. किसी के घर दावत में जाए, जितने आदमियों को तुम्हारे साथ दावत में बुलाया गया हे उतने आदमी ही ले जाए। हो सकता है उसके यहां खाना कम पड़ जाए तो वह भी शर्मिंदा हो और दूसरे लोग भी भुखे ही रह जाए।
7. जब दो आदमी आपसे में कुछ ख़ास बात कर रहे हो तो उनके बीच में जाकर न बैठ जाए, कि उन्हैं तक़लीफ हो।
8. अपनी बीवी के सामने किसी दूसरी औरत की तारीफ न करों, इसी तरह औरतों को भी अपने शौहर के सामने किसी दूसरे मर्द की तारीफ नहीं करनी चाहिए। जिससे उन्है तक़लीफ हो।
9. किसी दुसरे के खत को खोलकर मत पढ़ो, हो सकता है उसमें कोई राज़ हो जिससे वह हर एक से छुपाना चाहता हो और तुम्हारे पढ़ लेने से उसका राज़ खुल जाए, जिससे बाद में उसे तकलीफ हो।.
10. किसी से ऐसा मज़ाक न करो जिससे उसको तक़लीफ पहुंचे।
11. किसी को ऐसे नाम से न पुकारो जिससे उसको तकलीफ पहुंचती हो। कुरआन मजीद में इसकी सख्त मनाही है।
12. किसी शारीरिक रुप से अपंग व्यक्ति की कमियों को दूसरों के सामने बताने से पहले देख लो उसी कमी का कोई दूसरा व्यक्ति वहां तो नहीं है, हो सकता है यह सब सुनकर उसको भी तकलीफ हो।
13. किसी दीवार पर पान खाकर उस पर न थूंको कि मकान मालिक और देखने वालों को भी तकलीफ हो।
14. दो आदमी बात कर रहे हो और बिना उनके पूछे बीच में अपनी राय नही दे जिससे उनको तकलीफ हो।
इससे यही निश्कर्ष निकलता है कि तुम्हारे किसी बात चीत या व्यवहार से किसी को तक़लीफ़ न पहुंचे न तुम खुद बिना ज़रुरत किसी तक़लीफ में पड़ो।
कुछ बातों का ख़ास तौर पर ख्याल रखना चाहिए-
1. किसी के घर मेहमान बनकर जाए, या बीमार को देखने जाए, इतना देर तक या इतने दिन तक भी ना ठहरे कि मेज़बान तंग आ जाए और तक़लीफ़ में पड़ जाए।
2. किसी से मिलने जाए तो हद से ज्यादा या बे सिर पैर की बातें भी ना करें कि सुनने वाला परेशान हो जाए।
3. रास्तों में कोई ऐसा सामान न छोड़े जिससे ठोकर खाकर कोई रास्ते में गिर जाए।
4. किसी के घर मेहनान जाओ तो कोई ऐसी चीज की फरमाइश न करों, जिससे प्रबंध करने में मालिक को तक़लीफ हो।
5. खाना खाते समय ऐसी चीजों के नाम न ले जिससे किसी को घीन होती हो और उसको खाना खाने में तकलीफ आए।
6. किसी के घर दावत में जाए, जितने आदमियों को तुम्हारे साथ दावत में बुलाया गया हे उतने आदमी ही ले जाए। हो सकता है उसके यहां खाना कम पड़ जाए तो वह भी शर्मिंदा हो और दूसरे लोग भी भुखे ही रह जाए।
7. जब दो आदमी आपसे में कुछ ख़ास बात कर रहे हो तो उनके बीच में जाकर न बैठ जाए, कि उन्हैं तक़लीफ हो।
8. अपनी बीवी के सामने किसी दूसरी औरत की तारीफ न करों, इसी तरह औरतों को भी अपने शौहर के सामने किसी दूसरे मर्द की तारीफ नहीं करनी चाहिए। जिससे उन्है तक़लीफ हो।
9. किसी दुसरे के खत को खोलकर मत पढ़ो, हो सकता है उसमें कोई राज़ हो जिससे वह हर एक से छुपाना चाहता हो और तुम्हारे पढ़ लेने से उसका राज़ खुल जाए, जिससे बाद में उसे तकलीफ हो।.
10. किसी से ऐसा मज़ाक न करो जिससे उसको तक़लीफ पहुंचे।
11. किसी को ऐसे नाम से न पुकारो जिससे उसको तकलीफ पहुंचती हो। कुरआन मजीद में इसकी सख्त मनाही है।
12. किसी शारीरिक रुप से अपंग व्यक्ति की कमियों को दूसरों के सामने बताने से पहले देख लो उसी कमी का कोई दूसरा व्यक्ति वहां तो नहीं है, हो सकता है यह सब सुनकर उसको भी तकलीफ हो।
13. किसी दीवार पर पान खाकर उस पर न थूंको कि मकान मालिक और देखने वालों को भी तकलीफ हो।
14. दो आदमी बात कर रहे हो और बिना उनके पूछे बीच में अपनी राय नही दे जिससे उनको तकलीफ हो।
इससे यही निश्कर्ष निकलता है कि तुम्हारे किसी बात चीत या व्यवहार से किसी को तक़लीफ़ न पहुंचे न तुम खुद बिना ज़रुरत किसी तक़लीफ में पड़ो।
Wednesday, November 15, 2006
गुनाह की दो क़िस्में होती हैं
1. गुनाहे शगीरा (छोटे-छोटे गुनाह)
2. गुनाहे कबीरा (बड़े-बड़े गुनाह)
गुनाह शगीरा अच्छे आमाल, और इबादतों की बरक़ात से माफ हो जाते हैं, लेकिन गुनाहे क़बीरा उस वक्त तक माफ नही होते जब तक सच्चे दिल से तौबा करके अल्लाह से उनके हुक़ूक को माफ नहीं कराले।
2. गुनाहे कबीरा (बड़े-बड़े गुनाह)
गुनाह शगीरा अच्छे आमाल, और इबादतों की बरक़ात से माफ हो जाते हैं, लेकिन गुनाहे क़बीरा उस वक्त तक माफ नही होते जब तक सच्चे दिल से तौबा करके अल्लाह से उनके हुक़ूक को माफ नहीं कराले।
गुनाह कबीरा
गुनाह कबीरा हर उस गुनाह को कहते है जिसमें खुदा की तरफ से अजाब मुकरर्र किए गए हैं।
जैसे
शिर्क करना, जादू करना, बिना वज़ह किसी का ख़ून करना, सूद खाना, किसी यतीम का माल खाना, चोरी, शराब, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, माँ-बाप को तकलीफ देना, किसी पर जुल्म करना, जुआ खेलना, अल्लाह की रहमत से मायुस होना, अल्लाह के अजाब से बेखौफ हो जाना, नाच देखना, औरतों को बेपर्दा घुमना, नाप तौल में कमी करना, चुगली खाना, किसी की बुराई करना, मुसलमानों को आपस में लड़ाना, किसी की अमानत में ख़यानत करना, नमाज़, रोज़ा, हज व ज़कात आदि छोड़ देना ऐसे सैंकड़ों गुनाहे कबीरा में आते हैं जिनसे बचना हर मुसलमान औरत और मर्द पर फर्ज है।
गुनाहों की वज़ह से दुनिया में भी नुकसान
गुनाहों की वज़ह से आखिरत में अजाब तो मिलते ही है पर दुनिया में भी नुकसान पहुंचते रहते हैं।
रोज़ी कम हो जाना, उम्र घट जाना, शारीरिक कमजोरी आना, सेहत खराब रहना, इबादतों से महरुम हो जाना, लोगो की नजर में ज़लील होना, नेमतों का छिन जाना, लाइलाज बीमारिया होना, चेहरे से ईमान का नूर निकल जाने से चेहरा बेरौनक हो जाना। हर तरफ जिल्लत, रुसवाईयों का मिलना, मरते वक्त मुंह से कलमा न निकलना। ऐसे गुनाहो से बड़े - बड़े नुकसान हुआ करते है।
इबादतों से दुनियावी फायदे
इबादतों से आखिरत के फायदे तो हर शख्स जानता है। इसके साथ ही इबादतों की बरक़त से बहुत से दुनियावी फायदे भी हासिल होते है, जैसे रोज़ी बढना, माल, सामान, औलाद हर चीज़ में बरक़त होना, दुनियावी तक़लिफों और परेशानियों का दूर होना, बलाओं का टल जाना, दूसरों के दिलों में आपकी लिए मोहब्बत पैदा होना, नूर ए ईमान से चेहरे का बारौनक हो जाना, बारिश होना, हर जगह इज्जत मिलना, फाक़ा से बचा रहना, तरक्की करना, बीमारियों से शिफा पाना, खुशियों और मसर्रतों के साथ जिन्दगी बसर करना।
Saturday, November 11, 2006
Muslim's Rights in Islam
मुसलमानों के हूक़ूक
कुरआन शरीफ और हदीस में हर मुसलमान के लिए कुछ हक़ मुकर्रर किए है जिन्हें अपनाना हर मुसलमान पर फर्ज है।
1. मुलाक़ात के वक्त सबसे पहले सलाम करे।
2. किसी शराबी, जुआरी, काफिर, मशरिक आदि से सलाम करना मना किया गया है, जब कोई मुस्लिम इनसे सलाम करता है तो हदीस में है कि गजब-ए-इलाही से अर्श कांप जाता है क्योंकि सलाम करना ताजिम है और इनमें से कोई ताज़िम के लायक नहीं।
3. सलाम करना सुन्नत और उसका जवाब देना वाजिब है।
4. अगर अपने अज़ीज़ या रिश्तेदार मुफलिस हो, या खाने कमाने की ताक़त ना रखते हो तो अपनी माली हालत के मुताबिक़ उनकी मदद करते रहे।
5. मुसलमानो की नमाज़े जनाज़ा और उनके दफन में शरीक हो।
6. रिश्तेदारों से मिलते जुलते रहना, उनके खुशी और ग़म में शरीक़ होना सुन्नते रसूल है।
7. मुसलमानों की दावत को क़बुल करे।
8. लोगों को उनके व्यवहार (अख़्लाक) के अनुसार बुरे कामों से रोके।
9. तीन दिन से ज्यादा किसी मुसलमान से व्यवहार बंद ना करे।
10. मुसलमानों का आपस में झगड़ा हो जाये तो उनके बीच सुलह कराना सुन्नत है।
11. किसी को जानी व माली नुकसान न पहुंचाएं।
12. जो बात अपने लिए पसंद करे वहीं दूसरे मुसलमानों के लिए भी पसंद करे।
13. रास्ता भुले हुए को सीधा रास्ता दिखाए।
14. किसी को लोगों के सामने ज़लील व रुसवा ना करे।
1. मुलाक़ात के वक्त सबसे पहले सलाम करे।
2. किसी शराबी, जुआरी, काफिर, मशरिक आदि से सलाम करना मना किया गया है, जब कोई मुस्लिम इनसे सलाम करता है तो हदीस में है कि गजब-ए-इलाही से अर्श कांप जाता है क्योंकि सलाम करना ताजिम है और इनमें से कोई ताज़िम के लायक नहीं।
3. सलाम करना सुन्नत और उसका जवाब देना वाजिब है।
4. अगर अपने अज़ीज़ या रिश्तेदार मुफलिस हो, या खाने कमाने की ताक़त ना रखते हो तो अपनी माली हालत के मुताबिक़ उनकी मदद करते रहे।
5. मुसलमानो की नमाज़े जनाज़ा और उनके दफन में शरीक हो।
6. रिश्तेदारों से मिलते जुलते रहना, उनके खुशी और ग़म में शरीक़ होना सुन्नते रसूल है।
7. मुसलमानों की दावत को क़बुल करे।
8. लोगों को उनके व्यवहार (अख़्लाक) के अनुसार बुरे कामों से रोके।
9. तीन दिन से ज्यादा किसी मुसलमान से व्यवहार बंद ना करे।
10. मुसलमानों का आपस में झगड़ा हो जाये तो उनके बीच सुलह कराना सुन्नत है।
11. किसी को जानी व माली नुकसान न पहुंचाएं।
12. जो बात अपने लिए पसंद करे वहीं दूसरे मुसलमानों के लिए भी पसंद करे।
13. रास्ता भुले हुए को सीधा रास्ता दिखाए।
14. किसी को लोगों के सामने ज़लील व रुसवा ना करे।
आम इन्सानों के हूकूक
मुसलमानों के कुछ ऐसे अधिकार है जो हर इन्सान के लिए है चाहे वह किसी भी समाज या धर्म से संबंध रखता हो।
1. बिना किसी वजह के किसी को भी जानी व माली नुकसान न पहुंचाए।
2. बिना किसी शरई वजह के किसी के साथ भी बद्तमिजी , बहस ना करे।
3. बीमार का इलाज कराना, भुखे को खाना खिलाना, मुसिबत में किसी की मदद करना इन्सानी फर्ज है।
4. किसी को सज़ा देने या लड़ाईयों में शरीअत ने जो हद दी उनसे ज्यादा ना बढ़े। ये शरीअते इस्लाम की मुकदस तालीम से हर इन्सान का हर इन्सान पर हक़ है। हदीस में हे कि 'रहम करने वालों पर रहमान रहम करता है तुम लोग ज़मीन वालों पर रहम करों तो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा'।
5. सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया है कि तमाम दुनिया में वो शख्स अल्लाह के नज़दीक होगा जो उसकी मख्लुक (दुनिया में रहने वाले) के साथ अच्छा सलुक करे।
Saturday, November 04, 2006
Husband's Rights in Islam
बेहतरीन शौहर वो है जो
* जो अपनी बीवी के साथ नरमी, खुशदिली और मुहब्बत के साथ पेश आए।
* जो अपनी बीवी के हक़ अदा करने में किसी प्रकार की कोताही ना करे।
* जो अपनी बीवी का इस तरह हो कर रहे कि किसी अजनबी औरत पर निगाह न डाले।
* जो अपनी बीवी को अपने ऐश व आराम में बराबर की शरीक समझे।
* जो अपनी बीवी पर किसी तरह का जुल्म या ज्यादती ना करें।
* जो बीवी की बद्अख्लाकी पर सबर करें।
* जो अपनी बीवी की खूबियों पर नज़र रखे, और गलतियों को नज़रअन्दाज कर दे।
* जो बीवी की मुसिबतों, बीमारियों, रंज व ग़म में उसका भरपूर साथ दे।
* जो अपनी बीवी को परदे में रखकर उसकी हिफाजत करें।
* जो दीनदारी की ताकीद करता रहे और शरीअत की राह पर चलाए।
* जो बीवी को अपनी मेहनत की कमाई खिलाएं।
* जो बीवी के साथ साथ उसके खानदान के साथ भी अच्छा सलुक करे।
* अपनी बीवी के सामने किसी दूसरी औरत की खुबसूरती की तारीफ न करे।
* जो बीवी को इस तरह कन्ट्रोल रखे कि वह किसी बुराई की तरफ रुख नही करे।
* जो अपनी बीवी पर एतमाद व भरोसा रखे।
* जो अपनी बीवी के साथ नरमी, खुशदिली और मुहब्बत के साथ पेश आए।
* जो अपनी बीवी के हक़ अदा करने में किसी प्रकार की कोताही ना करे।
* जो अपनी बीवी का इस तरह हो कर रहे कि किसी अजनबी औरत पर निगाह न डाले।
* जो अपनी बीवी को अपने ऐश व आराम में बराबर की शरीक समझे।
* जो अपनी बीवी पर किसी तरह का जुल्म या ज्यादती ना करें।
* जो बीवी की बद्अख्लाकी पर सबर करें।
* जो अपनी बीवी की खूबियों पर नज़र रखे, और गलतियों को नज़रअन्दाज कर दे।
* जो बीवी की मुसिबतों, बीमारियों, रंज व ग़म में उसका भरपूर साथ दे।
* जो अपनी बीवी को परदे में रखकर उसकी हिफाजत करें।
* जो दीनदारी की ताकीद करता रहे और शरीअत की राह पर चलाए।
* जो बीवी को अपनी मेहनत की कमाई खिलाएं।
* जो बीवी के साथ साथ उसके खानदान के साथ भी अच्छा सलुक करे।
* अपनी बीवी के सामने किसी दूसरी औरत की खुबसूरती की तारीफ न करे।
* जो बीवी को इस तरह कन्ट्रोल रखे कि वह किसी बुराई की तरफ रुख नही करे।
* जो अपनी बीवी पर एतमाद व भरोसा रखे।
बेहतरीन बीवी की पहचान ये है कि
* जो अपने शौहर के सभी अधिकार पुरे करने में कोताही न करे।
* जो अपने शौहर की खूबियों पर नज़र रखे और खामियों को नज़र अन्दाज़ करे।
* जो शौहर की फरमाबरदारी और खिदमत गुज़ारी को अपना फर्ज समझे।
* जो खुद तकलीफ उठा कर अपने शौहर को आराम पहुंचाने की हमेशा कोशिश करती रहे।
* जो शौहर की आमदनी से ज्यादा खर्च ना करे।
* जो शौहर के सिवा किसी अजनबी पर निगाह ना डाले।
* जो परदे में रहे।
* शौहर के माल, सामान मकान और खुद अपने आपको शौहर की अमानत समझकर उनकी हिफाजत और निगाहबानी करे।
* शौहर को मुसिबत में अपनी जानी व माली कुर्बानी के साथ वफादारी से साथ दे।
* जो शौहर की ज्यादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे।
* जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो।
* जो अपने शौहर की खूबियों पर नज़र रखे और खामियों को नज़र अन्दाज़ करे।
* जो शौहर की फरमाबरदारी और खिदमत गुज़ारी को अपना फर्ज समझे।
* जो खुद तकलीफ उठा कर अपने शौहर को आराम पहुंचाने की हमेशा कोशिश करती रहे।
* जो शौहर की आमदनी से ज्यादा खर्च ना करे।
* जो शौहर के सिवा किसी अजनबी पर निगाह ना डाले।
* जो परदे में रहे।
* शौहर के माल, सामान मकान और खुद अपने आपको शौहर की अमानत समझकर उनकी हिफाजत और निगाहबानी करे।
* शौहर को मुसिबत में अपनी जानी व माली कुर्बानी के साथ वफादारी से साथ दे।
* जो शौहर की ज्यादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे।
* जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो।
Wive's Rights in Islam
बीवी के हक़ शौहर पर
इस्लाम ने औरतों पर अपने शौहर के लिए कुछ नियम बनाये जिनका सख्ती से पालन करना बीवियों के लिए फर्ज हैं। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि अगर मैं खुदा के अलावा किसी ओर को सज़्दा करने का हुक़्म देता तो, मैं औरतों को हुक़्म देता, कि वो अपने शौहर को सज़्दा करें।
शौहर के हक़ूक़ तो बहुत ज़्यादा है. इनमें से नीचे लिखे कुछ हक़ूक़ ज्यादा क़ाबिलें फर्ज है।
1. शौहर की इज़ाजत के बगैर घर से बाहर कहीं न जाये।
2. शौहर की गैर मौजूदगी में उसकी इज़ाजत के बगैर किसी को घर में आने नहीं दे, न कोई सामान उससे पुछे बगैर किसी को दे।
3. शौहर के मकान, माल और सामान की बीवी अमीन होती है, उसकी इज़ाजत के बगैर किसी को कुछ भी देना अमानत में खयानत है, जो एक बहुत बड़ा गुनाह हैं।
4. किसी भी स्थिति में ऐसा काम न करे जो शौहर को पसन्द न हो।
5. बच्चों की अच्छी तरबियत उनकी परवरिश उस पर फर्ज है।
6. मकान की हिफाज़त के साथ साफ सफाई का भी ख़ास ख्याल रखें।
7. हदीस में है कि अगर शौहर हुक्म दे की दिन भर धूप में खड़ी रहो, या रात भर जागती रहो तो बीवी पर फर्ज है कि वह उसके हुक्म की नाफरमानी नहीं करें। थोड़ी तकलीफ और सब्र के साथ उस पर अमल करे।
साथ में कुछ बातों का और ध्यान रखेः-
٭ शौहर की पसन्द, नापसन्द का ख्याल रखें। उसके उठने, बैठने, खाने-पीने, सोने-जागने, पहनने - ओढ़ने और बातचीत में उसकी आदत और हर बात को जान ले, उसके बाद लाज़िम है कि वह शौहर की आदतें पहचान लेने के बाद हर काम उसके अनुसार करे, चाहे उसका अमल उसका तरीका सही हो या गलत।
* अपने शौहर के माल, सामान, मकान आदि की कमिया नही निकालें.
* शौहर की शक्ल सूरत में खामियां नहीं ढूंढे।
* शौहर के मां-बाप, खानदान को कमेन्ट नहीं करें।
* शौहर की माली हालत के अनुसार खर्च करें।
* हमेशा शौहर के सामने उठते, बैठते या बातचीत में हर हालत में बाअदब रहे।
* शौहर की आमदनी या कमाई का हिसाब उससे न मांगे।
* अपने मां- बाप के, अपने परिवार की बड़ी बड़ी बातें उससे न करें।
* शौहर अगर किसी बात पर नाराज़ है तो उसे हर कीमत पर मनाये।
इस्लाम ने औरतों पर अपने शौहर के लिए कुछ नियम बनाये जिनका सख्ती से पालन करना बीवियों के लिए फर्ज हैं। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि अगर मैं खुदा के अलावा किसी ओर को सज़्दा करने का हुक़्म देता तो, मैं औरतों को हुक़्म देता, कि वो अपने शौहर को सज़्दा करें।
शौहर के हक़ूक़ तो बहुत ज़्यादा है. इनमें से नीचे लिखे कुछ हक़ूक़ ज्यादा क़ाबिलें फर्ज है।
1. शौहर की इज़ाजत के बगैर घर से बाहर कहीं न जाये।
2. शौहर की गैर मौजूदगी में उसकी इज़ाजत के बगैर किसी को घर में आने नहीं दे, न कोई सामान उससे पुछे बगैर किसी को दे।
3. शौहर के मकान, माल और सामान की बीवी अमीन होती है, उसकी इज़ाजत के बगैर किसी को कुछ भी देना अमानत में खयानत है, जो एक बहुत बड़ा गुनाह हैं।
4. किसी भी स्थिति में ऐसा काम न करे जो शौहर को पसन्द न हो।
5. बच्चों की अच्छी तरबियत उनकी परवरिश उस पर फर्ज है।
6. मकान की हिफाज़त के साथ साफ सफाई का भी ख़ास ख्याल रखें।
7. हदीस में है कि अगर शौहर हुक्म दे की दिन भर धूप में खड़ी रहो, या रात भर जागती रहो तो बीवी पर फर्ज है कि वह उसके हुक्म की नाफरमानी नहीं करें। थोड़ी तकलीफ और सब्र के साथ उस पर अमल करे।
साथ में कुछ बातों का और ध्यान रखेः-
٭ शौहर की पसन्द, नापसन्द का ख्याल रखें। उसके उठने, बैठने, खाने-पीने, सोने-जागने, पहनने - ओढ़ने और बातचीत में उसकी आदत और हर बात को जान ले, उसके बाद लाज़िम है कि वह शौहर की आदतें पहचान लेने के बाद हर काम उसके अनुसार करे, चाहे उसका अमल उसका तरीका सही हो या गलत।
* अपने शौहर के माल, सामान, मकान आदि की कमिया नही निकालें.
* शौहर की शक्ल सूरत में खामियां नहीं ढूंढे।
* शौहर के मां-बाप, खानदान को कमेन्ट नहीं करें।
* शौहर की माली हालत के अनुसार खर्च करें।
* हमेशा शौहर के सामने उठते, बैठते या बातचीत में हर हालत में बाअदब रहे।
* शौहर की आमदनी या कमाई का हिसाब उससे न मांगे।
* अपने मां- बाप के, अपने परिवार की बड़ी बड़ी बातें उससे न करें।
* शौहर अगर किसी बात पर नाराज़ है तो उसे हर कीमत पर मनाये।
Wednesday, November 01, 2006
इस्लाम से पहले औरत
इस्लाम से पहले औरत का हाल बहुत खराब था। दुनिया में औरतों की कोई इज्ज़त नहीं थी। मर्दों के लिए उनकी नफसानी ख्वाहिश पुरी करने का खिलौना मात्र थी। मजदूरी करके जो कमाती थी वो भी मर्दों को देती थी।
जानवरों की तरह उनको मारते पीटते थे, छोटी छोटी बात पर उनके कान, नाक काट दिया करते थे, यहां तक कि कत्ल भी कर दिया करते थे।
लड़कियों को जिन्दा दफन कर दिया करते थे। बाप के मरने के बाद बेटे जायदाद के साथ बाप की बिवियों के भी मालिक बन जाया करते थे।
औरतों के बेवा हो जाने के बाद एक बन्द अन्धेरे कमरे में एक साल तक कैद करके रखते थे। एक साल तक खाना पानी के अलावा जरुरत की सारी चीज़े बंद कर देते।
बहुत सी औरतें तो घुटकर मर जाती थी। जो बच जाती थी उनके साथ ऐसे व्यवहार किये जाता थे कि औरतें रो रोकर, घुट घुटकर जिन्दगी गुजारती थी।
औरतों को शौहर की चिता के साथ ही जला दिया जाता था जिसे लोग 'सती' कहते थे।
समाज में न औरतों के कोई हक़ थे न उनकी फरियाद को कोई सुनने वाला था। रहमतुल आलमीन की रहमत का आफताब जब उजागर हुआ तो सारी दुनिया ने अचानक ये महसुस किया कि
जहां तारीक़ था, ज़ुलमातकदा था, सख्त काला था
कोई पर्दे से किया निकला के घर घऱ में उजाला था।
औरत इस्लाम के बाद
जब हमारे रसूल रहमत हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाह अलैहेवसलम खुदा की तरफ से दीने इस्लाम लेकर तशरीफ लाए तो दुनिया भर की सताई हुई औरतों का सितारा चमक उठा और इस्लाम की बदौलत ज़ालिम मर्दों के जुल्म व सितम से निकलकर औरतों का दर्जा मर्दों की तरह उनके बराबर हो गया। औरतों के भी हक़ मुकरर्र हो गये।
उनके हक़ (अधिकार) दिलाने के लिए खुदा की तरफ से क़ानून आसमान से नाज़िल हो गये, अदालतें कायम हो गई, औरतें अपने रक़मों, अपनी तिजारती, अपनी जायदाद की मालिक बन गई।
अपने भाई, मां-बाप, शौहर, औलाद की जायदाद की मालिक बन गई। हर मर्द मज़हबी तौर पर औरतों के अधिकार अदा करने पर मजबूर है।
औरतों को इतनी बुलन्द मंजिलों पर पहुंचा देना, ये हमारे रसूल रहमत हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाह अलैहेवसलम का एहसाने अज़ीम है
उनके हक़ (अधिकार) दिलाने के लिए खुदा की तरफ से क़ानून आसमान से नाज़िल हो गये, अदालतें कायम हो गई, औरतें अपने रक़मों, अपनी तिजारती, अपनी जायदाद की मालिक बन गई।
अपने भाई, मां-बाप, शौहर, औलाद की जायदाद की मालिक बन गई। हर मर्द मज़हबी तौर पर औरतों के अधिकार अदा करने पर मजबूर है।
औरतों को इतनी बुलन्द मंजिलों पर पहुंचा देना, ये हमारे रसूल रहमत हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाह अलैहेवसलम का एहसाने अज़ीम है
इस्लाम की नज़र में औरत क्या है
औरतः
खुदा की बड़ी से बड़ी नैमतों में से एक है।
दुनिया की आबादकारी और दिनदारी में मर्दों के बराबर शरीक है।
मर्द के दिल का सकुन, बदन का चैन, ज़हन का इत्मिनान, रुह की राहत है।
दुनिया के खुबसुरत चेहरों की एक आंख है, अगर औरत ना होती तो दुनिया की सुरत कानी होती।
आदम अलैहिस्सलाम व हज़रत हव्वा के सिवा तमाम इन्सानों की मां है, इसलिए वो सबके लिए काबिले एहतराम है।
औरत के बगैर मर्दों की ज़िन्दगी जंगली जानवर से बद्तर होती।
औरत बचपन में भाई - बहन से मुहब्बत करती है, शादी के बाद शोहर से मुहब्बत करती है, मां बनने के बाद बच्चों से मुहब्बत करती है, इसलिए औरत प्यार व मुहब्बत का ताज़ महल है।
खुदा की बड़ी से बड़ी नैमतों में से एक है।
दुनिया की आबादकारी और दिनदारी में मर्दों के बराबर शरीक है।
मर्द के दिल का सकुन, बदन का चैन, ज़हन का इत्मिनान, रुह की राहत है।
दुनिया के खुबसुरत चेहरों की एक आंख है, अगर औरत ना होती तो दुनिया की सुरत कानी होती।
आदम अलैहिस्सलाम व हज़रत हव्वा के सिवा तमाम इन्सानों की मां है, इसलिए वो सबके लिए काबिले एहतराम है।
औरत के बगैर मर्दों की ज़िन्दगी जंगली जानवर से बद्तर होती।
औरत बचपन में भाई - बहन से मुहब्बत करती है, शादी के बाद शोहर से मुहब्बत करती है, मां बनने के बाद बच्चों से मुहब्बत करती है, इसलिए औरत प्यार व मुहब्बत का ताज़ महल है।
Saturday, October 28, 2006
मुसलमान औरतों का पर्दा
अल्लाह व रसुल (सलल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने इन्सानी फितरत के तकाज़ों के मुताबिक बुरे कामों से बचने के लिए औरतों को परदे में रखने का हुक्म दिया। परदे की एहमियत कुरआन मजीद और हदीसों से साबित है जिसमें हुक्म फरमाया गया है कि
औरतें घर के अन्दर रहे।
दुनिया की बेहयाई व बेपरदगी की रस्म को छोड़ दे।
बन संवर कर बाजा़रों, मेलों, थियेटरों में जाना छोड़ दे।
जरुरत पड़ने पर बाहर निकले भी तो परदे में निकले।
हदीस में रसुलअल्लाह सलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया औरतें जिस वक्त बेपर्दा होकर बाहर निकलती है, तो शैतान की बुरी नज़र उस पर पड़ती है। सजसंवर कर बेपर्दा होकर निकलने वाली औरतें उस अन्धेरे के बराबर है जिसमें रोशनी ही न हो।
हदीस में ऐसी औरतों को निहायत बद्चलन बताया गया है जो खुशबू लगाकर मर्दों के सामने से गुजरे।
आज हम चारों तरफ देखते है बाजारों, सिनेमाघरों में, क्लबों में, होटलों में हर जगह मुस्लिम औरतें बेपर्दा सजसंवर कर घुमती हैं, और अपने आपको मोर्डन कहती हैं, वो खुद सोच सकती है कि वो कितनी बड़ी गुनाहगार है।
पर्दा क्या है?
पर्दा इज्जत है बेइज्जती नहीं। इस्लाम ने औरतों को पर्दें में रखकर औरतों की इज्जत और बढ़ाई है, जैसे दुनिया की तमाम किताबें खुली रहती है मगर कुरआन शरीफ पर हमेशा कवर चढ़ा होता है, ये कुरआन शरीफ की इज्जत है।
इसी तरह तमाम दुनिया की मस्जिद बेपर्दा है,मगर खाना-ए- काबा पर कवर चढ़ा कर उसको पर्दे में रखा गया, ये उसकी इज्जत है।
कुरआन शरीफ और खाना-ए-काबा के बारे में तमाम दुनिया जानती है कि उनको पर्दे में रखकर उनकी इज्जत व अज़मत का एलान किया गया है।
इसी तरह मुसलमान औरतों को पर्दे में रखकर अल्लाह व रसुल की तरफ से इस बात का एलान किया गया है कि दुनिया-ए-आलम की तमाम औरतों में मुस्लिम औरत अफज़ल व आला है।
पर्दा फर्ज है
इन लोगो से पर्दा करना फर्ज है जैसे-
अजनबी, दूर रहने वाला रिश्तेदार, कज़िन, देवर, पीर, कुफ्फार, मशरकीन, बुरी औरतें,
इन लोगो से पर्दा करना फर्ज नहीं है जैसे-
वालिद, दादा, चाचा, मामु, नाना, भाई, भतीजा, भांजा, पोता, नवासा, खुसर
औरतें घर के अन्दर रहे।
दुनिया की बेहयाई व बेपरदगी की रस्म को छोड़ दे।
बन संवर कर बाजा़रों, मेलों, थियेटरों में जाना छोड़ दे।
जरुरत पड़ने पर बाहर निकले भी तो परदे में निकले।
हदीस में रसुलअल्लाह सलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया औरतें जिस वक्त बेपर्दा होकर बाहर निकलती है, तो शैतान की बुरी नज़र उस पर पड़ती है। सजसंवर कर बेपर्दा होकर निकलने वाली औरतें उस अन्धेरे के बराबर है जिसमें रोशनी ही न हो।
हदीस में ऐसी औरतों को निहायत बद्चलन बताया गया है जो खुशबू लगाकर मर्दों के सामने से गुजरे।
आज हम चारों तरफ देखते है बाजारों, सिनेमाघरों में, क्लबों में, होटलों में हर जगह मुस्लिम औरतें बेपर्दा सजसंवर कर घुमती हैं, और अपने आपको मोर्डन कहती हैं, वो खुद सोच सकती है कि वो कितनी बड़ी गुनाहगार है।
पर्दा क्या है?
पर्दा इज्जत है बेइज्जती नहीं। इस्लाम ने औरतों को पर्दें में रखकर औरतों की इज्जत और बढ़ाई है, जैसे दुनिया की तमाम किताबें खुली रहती है मगर कुरआन शरीफ पर हमेशा कवर चढ़ा होता है, ये कुरआन शरीफ की इज्जत है।
इसी तरह तमाम दुनिया की मस्जिद बेपर्दा है,मगर खाना-ए- काबा पर कवर चढ़ा कर उसको पर्दे में रखा गया, ये उसकी इज्जत है।
कुरआन शरीफ और खाना-ए-काबा के बारे में तमाम दुनिया जानती है कि उनको पर्दे में रखकर उनकी इज्जत व अज़मत का एलान किया गया है।
इसी तरह मुसलमान औरतों को पर्दे में रखकर अल्लाह व रसुल की तरफ से इस बात का एलान किया गया है कि दुनिया-ए-आलम की तमाम औरतों में मुस्लिम औरत अफज़ल व आला है।
पर्दा फर्ज है
इन लोगो से पर्दा करना फर्ज है जैसे-
अजनबी, दूर रहने वाला रिश्तेदार, कज़िन, देवर, पीर, कुफ्फार, मशरकीन, बुरी औरतें,
इन लोगो से पर्दा करना फर्ज नहीं है जैसे-
वालिद, दादा, चाचा, मामु, नाना, भाई, भतीजा, भांजा, पोता, नवासा, खुसर
(Parents Rights On Children)
इस्लाम ने औलाद को माँ - बाप के लिए कई आदेश दिए है, जिनका पालन करना उनके लिए इतना ही ज़रूरी है, जितना कि खुदा के सिवा किसी ओर की पूजा नहीं करना। इस्लाम कहता है, 'अपने माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करों। खुदा से उनके लिए दुआ करों की वह उनपर वैसा ही करम करे जैसा बचपन मै उसके पेरेन्टस ने उस पर किया।
अपने पेरेन्टस के आदर में निम्न बातें शामिल हैः
उनसे सच्चे दिल से मुहब्बत करें।
हर वक्त उन्हे खुश रखने की कोशिश करें।
अपनी कमाई दौलत, माल उनसे न छुपाएँ।
माँ - बाप को उनका नाम लेकर न पुकारें।
अल्लाह को खुश करना हो तो अपने माँ - बाप को मुहब्बत भरी निगाह से देखों।
अपने माँ - बाप से अच्छा सुलूक करोगे तो तुम्हारे बेटे तुम्हारे साथ अच्छा सुलूक करेंगे।
माँ - बाप से अदब से बात करें, डांट-डपट करना अदब के खिलाफ है।
दुनिया में पूरी तरह उनका साथ दें।
माँ - बाप की नाफरमानी से बचो, क्योंकि माँ - बाप की खुशनूदी में रब की खुशनूदी है और उनकी नाराजगी में रब की नाराजगी।
अगर चाहते हो कि खुदा तुम्हारी बिज़नेस में फायदा दे, तो अपने माँ - बाप से रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक बनाए रखे।
कभी कभी कब्र पर जाया करे, और उनके लिए दुआ करें।
दुआ करे कि 'हे अल्लाह उनपर वैसा ही रहम करना जैसा उन्होने मेरे बचपन में मेरी परवरिश के समय किया'।
आज हम अपनी इन्ही मज़हबी बातों से भटक गये है, हमारे माँ - बाप को आदर देने के बजाय हम अपनी दुनियावी ख्वाहिशों के लिए उनसे लड़ते - झगड़ते है, मरने के बाद उनके कब्र की ज्ञियारत तो दूर की बात है उनके लिए कोई सद्का खैरात तक नहीं करते। बुढापे में उनकी खिदमात के बजाय अपने दुनिया के फिजूल कामों में लगे रहते है। अल्लाह से मेरी ये दुआ है कि वो हमें इन गुनाहों से बचाए।
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